कांग्रेस में अडानी पर चुप्पी, राहुल गांधी की मांग पर नेताओं की खामोशी पर उठे सवाल
कांग्रेस पार्टी में इन दिनों एक नई तनातनी की शुरुआत हो रही है, और वह तनातनी अब राफेल से बढ़कर अडानी के भ्रष्टाचार के कथित आरोपों तक पहुंच गई है। हाल ही में अमेरिका में अडानी समूह पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे, जिसके बाद राहुल गांधी ने न केवल अडानी की गिरफ्तारी की मांग की, बल्कि SEBI प्रमुख माधवी बुच को भी पद से हटाने की अपील की। लेकिन इसके बाद जो हुआ, वह कांग्रेस पार्टी के अंदर की राजनीति के नए पहलू को उजागर करता है—राहुल गांधी की इस मांग पर कांग्रेस के कई बड़े और वरिष्ठ नेता पूरी तरह से खामोश रहे।
राहुल के बयान पर चुप्पी: पार्टी के भीतर के असहज सवाल
राहुल गांधी का अडानी पर आरोप लगाना और उसकी गिरफ्तारी की मांग करना कोई साधारण बयान नहीं था, लेकिन कांग्रेस के उन वरिष्ठ नेताओं की चुप्पी ने पार्टी के भीतर गहरी निराशा और असमंजस पैदा किया। इनमें से कुछ नेता, जो आमतौर पर राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं, ने न तो राहुल के ट्वीट को रिट्वीट किया, न ही इस मुद्दे पर कोई बयान दिया। इन नेताओं में वर्तमान मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, और पार्टी के कई वरिष्ठ पदाधिकारी शामिल थे, जिनकी चुप्पी ने पार्टी के अंदर उठ रहे सवालों को और बढ़ा दिया।
राहुल गांधी की इस मांग के बारे में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की खामोशी को लेकर अब पार्टी के भीतर चर्चाएं तेज हो गई हैं। प्रमुख नेताओं की चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं, जिनमें अशोक गहलोत (पूर्व मुख्यमंत्री), भूपेंद्र सिंह हुडा (पूर्व मुख्यमंत्री), कमलनाथ (पूर्व मुख्यमंत्री), पी चिदंबरम (पूर्व वित्त मंत्री), दिग्विजय सिंह (पूर्व मुख्यमंत्री), और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे बड़े नाम शामिल हैं। इन नेताओं ने न तो राहुल के बयान का समर्थन किया, न ही उसे सार्वजनिक मंचों पर उठाया।
प्रियंका गांधी का सवाल: "राहुल के साथ कितने खड़े थे?"
2019 में जब कांग्रेस की हार के बाद पार्टी की समीक्षा बैठक हुई थी, प्रियंका गांधी ने सवाल उठाया था, "राहुल गांधी राफेल पर संघर्ष करते रहे, लेकिन कितने लोग उनके साथ खड़े थे? कौन उनके साथ आया?" इस सवाल का संदर्भ आज फिर से कांग्रेस नेताओं की चुप्पी के साथ जुड़ता है, जब राहुल ने अडानी पर आरोप लगाए, और पार्टी के अधिकांश वरिष्ठ नेताओं ने इस मुद्दे को नजरअंदाज कर दिया।
आलाकमान की ओर से दिशा निर्देश
जब पार्टी के नेता राहुल गांधी के बयान पर चुप रहे, तो आलाकमान को स्थिति संभालने के लिए कदम उठाना पड़ा। आलाकमान ने देर रात प्रदेश कांग्रेस इकाइयों को निर्देश दिए कि वे इस मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करें और पार्टी का पक्ष स्पष्ट करें। इसके बाद कई राज्यों में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्षों ने मीडिया के सामने आकर अडानी के खिलाफ राहुल गांधी के आरोपों का समर्थन किया और इस पर पार्टी का रुख स्पष्ट किया।
क्या है कांग्रेस के भीतर की राजनीति?
यह पूरा मामला कांग्रेस के भीतर गहरे अंतर्द्वंद्व और नेतृत्व को लेकर उठ रहे सवालों को उजागर करता है। राहुल गांधी के बयान पर चुप्पी साधने वाले नेताओं का रवैया पार्टी में अंदरूनी असहमति को भी दर्शाता है। क्या यह खामोशी पार्टी के नेतृत्व को लेकर विश्वास की कमी का संकेत है, या फिर ये नेता किसी राजनीतिक दबाव के कारण चुप्प हैं? यही सवाल अब कांग्रेस पार्टी के भीतर गंभीर चर्चा का विषय बन गया है।
कांग्रेस के लिए यह एक अहम मोड़ है, जहां पार्टी को अपनी आंतरिक एकजुटता और नेतृत्व पर विचार करने की जरूरत है, खासकर जब बाहरी मुद्दों के खिलाफ आवाज उठाने की बात आती है।
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