महाराष्ट्र में BJP गठबंधन की ऐतिहासिक जीत का राज: संघ के मास्टरप्लान और बूथ स्तर की रणनीति ने कैसे पलटा चुनावी समीकरण। पढ़ें चुनावी जीत की पूरी कहानी।
महाराष्ट्र की राजनीति में वह समय कोई नहीं भूल सकता जब लोकसभा चुनाव के परिणामों ने भाजपा को गहरे सदमे में डाल दिया था। पार्टी के भीतर और बाहर हर ओर निराशा थी। छह महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर उम्मीदें बेहद कम थीं। लेकिन फिर एक चमत्कार हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भाजपा ने ऐसा तालमेल बैठाया कि जो परिणाम सामने आए, उस पर खुद भाजपा को भी यकीन नहीं हो रहा था।
कहानी की शुरुआत: एक झटके से सबक
लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद भाजपा और संघ ने अपने रिश्तों की कमियों का गंभीरता से विश्लेषण किया। इसके बाद संघ के सहसरकार्यवाह अतुल लिमये और भाजपा के राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री शिवप्रकाश को बड़ी जिम्मेदारी दी गई। यह जोड़ी सिर्फ रणनीति बनाने तक सीमित नहीं रही, बल्कि हर स्तर पर सक्रिय होकर चुनाव का चेहरा बदलने में जुट गई।
तालमेल से मजबूत हुई जड़ें
अतुल लिमये ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी तालमेल बैठाने का काम शुरू किया। दूसरी तरफ, शिवप्रकाश ने बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने में अपनी ऊर्जा झोंक दी। इस अभियान में नितिन गडकरी जैसे वरिष्ठ नेताओं को भी पूरी तरह सक्रिय किया गया। संघ से मार्गदर्शन के लिए बीएल संतोष भी लगातार मौजूद रहे।
सामाजिक समीकरणों का मास्टर स्ट्रोक
चुनाव जीतने के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी—सामाजिक समीकरणों को अपने पक्ष में करना। मराठा आरक्षण को लेकर विपक्षी दलों ने देवेंद्र फडणवीस को घेरने की पूरी कोशिश की। लेकिन संघ ने इस चुनौती को अवसर में बदल दिया।
ओबीसी, अनुसूचित जाति-जनजाति और मराठा समाज के गैर-राजनीतिक नेताओं के साथ सीधी बैठकें आयोजित की गईं। देवेंद्र फडणवीस ने खुद उन्हें सरकार के कामों और भविष्य की योजनाओं से अवगत कराया। नतीजा यह हुआ कि भाजपा को अनुसूचित जनजाति की 16 में से 15 सीटों पर जीत मिली। मराठा समाज को भी यह एहसास कराया गया कि भाजपा ने ही दो बार उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की थी।
ग्रासरूट स्तर पर संघ का जादू
संघ ने सिर्फ बड़े नेताओं तक ही नहीं, बल्कि बूथ स्तर तक अपनी पकड़ मजबूत की। हर बूथ समिति को किसी न किसी समाज से जोड़ने का काम किया गया। यह सुनिश्चित किया गया कि बूथ स्तर के कार्यकर्ता मतदाताओं के साथ व्यक्तिगत संपर्क में रहें।
लाडली बहन योजना और महिला वोट बैंक
महिला मतदाताओं को साधने के लिए भाजपा ने लाडली बहन योजना को हथियार बनाया। बूथ कार्यकर्ताओं ने महिलाओं के फार्म भरवाने से लेकर उनके खातों में पैसा पहुंचने तक सक्रिय भूमिका निभाई। इसका असर मत प्रतिशत में बढ़ोतरी के रूप में साफ दिखा।
288 सीटों पर संघ का फोकस, 236 सीटों पर जीत
संघ ने अपनी रणनीति को सिर्फ भाजपा की सीटों तक सीमित नहीं रखा। राज्य की सभी 288 सीटों पर संघ ने एक जैसा काम किया। इस व्यापक तैयारी का नतीजा यह हुआ कि महायुति को 236 सीटों पर जीत मिली—पिछले 50 सालों में किसी भी गठबंधन की सबसे बड़ी सफलता।
निष्कर्ष: संघ-भाजपा की साझेदारी का करिश्मा
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का यह परिणाम दिखाता है कि मजबूत रणनीति और संघ-भाजपा के तालमेल ने कैसे नामुमकिन को मुमकिन बना दिया। यह जीत सिर्फ सीटों का आंकड़ा नहीं, बल्कि संगठनात्मक कौशल और ग्रासरूट लेवल की मेहनत की मिसाल है।
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