UPPCL रिश्वत कांड में चौथा अध्याय सामने आया है। प्रोजेक्ट मैनेजर रामकुमार सैनी पर 3 लाख रुपये की रिश्वत मांगने का आरोप, ऑडियो क्लिप और दस्तावेज़ों के बावजूद GM राजीव पांडे की चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या UPPCL में भ्रष्टाचार को संरक्षण मिल रहा है?
UPPCL में भ्रष्टाचार का जिन्न एक बार फिर खुलकर सामने आ गया है। पिनाहट बस स्टैंड के टेंडर में 3 लाख रुपये की रिश्वत मांगने के आरोप में फंसे प्रोजेक्ट मैनेजर रामकुमार सैनी का मामला अब चौथे अध्याय तक पहुंच चुका है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इतने पुख्ता साक्ष्यों और बार-बार की गई शिकायतों के बावजूद जनरल मैनेजर राजीव पांडे की चुप्पी अब सवाल बन चुकी है।
मामले को पूरा एक महीना हो चुका है। शिकायतकर्ता ने केवल आरोप नहीं लगाया, बल्कि ऑडियो क्लिप के रूप में रिश्वत मांगने के साक्ष्य भी प्रस्तुत किए। चैनल की टीम ने यह ऑडियो, दस्तावेज़ और पूरी शिकायत UPPCL के जनरल मैनेजर राजीव पांडे को दो बार आधिकारिक ईमेल और कॉल के ज़रिये भेजी।

टीम ने बुधवार से शुक्रवार तक GM से संपर्क साधने की कोशिश की— क्योंकि वे स्वयं कह चुके थे कि इस अवधि में वे आगरा में मौजूद थे। इसके बावजूद न उन्होंने कॉल उठाया, न ही मेल का कोई जवाब दिया।
जब हमारी टीम ने उनसे सीधे सवाल किया तो उनका जवाब था— "आपने मुझसे संपर्क नहीं किया।"
अब सवाल यही उठता है कि आखिर और किस प्रकार संपर्क किया जाता?
आज जब टीम ने एक बार फिर GM राजीव पांडे से संपर्क किया तो उन्होंने फिर वही पुराना जवाब दोहराया— "इसमें कोई ऑथेंटिसिटी नहीं है।"
इतना सब होने के बाद जब हमारी टीम पर खबर रोकने का दबाव बनने लगा, हमारे कार्यालय तक लोग पहुंचने लगे— तब भी GM की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
UPPCL और संबंधित अधिकारियों को दो बार पूरी रिपोर्ट, ऑडियो क्लिप और दस्तावेज़ मेल द्वारा भेजे गए हैं। अब सवाल यही है—
क्या रामकुमार सैनी अकेले रिश्वत मांग रहे थे?
या फिर इस खेल में कुछ रसूखदार लोगों की रिश्तों की परतें भी छुपी हैं?

सूत्रों की मानें तो ₹40 लाख से ऊपर के प्रोजेक्ट बिना GM की अनुमति के पास नहीं हो सकते। तो क्या रामकुमार सैनी को किसी प्रकार का संरक्षण प्राप्त है?
जनरल मैनेजर राजीव पांडे की यह चुप्पी अब संदेह का कारण बनती जा रही है। जब दस्तावेज़, ऑडियो और शिकायत सामने है, तो जवाब कौन देगा?
वहीं रामकुमार सैनी पर लगे आरोपों को लेकर भी कोई आधिकारिक जांच शुरू नहीं हुई है। क्या अब जांच तभी शुरू होगी, जब उच्चस्तरीय हस्तक्षेप हो?
जब पत्रकारिता अपनी जिम्मेदारी निभा चुकी है—
जब साक्ष्य भेजे जा चुके हैं—
तो फिर सरकारी जवाबदेही कहाँ है?
अब जनता पूछ रही है—
UPPCL में कौन-कौन हैं इस रिश्वत तंत्र के हिस्सेदार?
और सबसे जरूरी—
क्या कोई कार्रवाई होगी, या ये मामला भी फाइलों में दफन हो जाएगा?
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