बिहार में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। प्रधानमंत्री मोदी का लगातार राज्य दौरा, तेजस्वी यादव का कामकाज का ब्योरा, नीतीश कुमार की अगड़ा समीकरण साधने की कोशिश और प्रशांत किशोर की तीसरी शक्ति बनने की चाहत—इन सभी के बीच बिहार की सियासी तस्वीर तेजी से बदल रही है। गठबंधनों के भीतर की खींचतान और जनता के सामने रखे जा रहे वादों के बीच असली सवाल यही है—आखिर इस बार किसके सिर सजेगा सत्ता का सेहरा?
बिहार में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सियासी जमीन तप चुकी है। हर दल अपनी-अपनी मोर्चाबंदी में जुट गया है। लेकिन इस बार मामला सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि “सियासी अस्तित्व” का है। क्योंकि खेल में हैं सिर्फ चेहरे नहीं—दांव पर हैं पिछले 25 साल के शासन की विरासतें, वादों की विश्वसनीयता और जातीय संतुलन का जादू।
🔶 ऑपरेशन सिंदूर: शुरुआत एक मिशन की, असर चुनाव तक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “ऑपरेशन सिंदूर” के जरिये एक स्पष्ट संदेश दिया—बिहार अब पिछड़ेपन की परिभाषा नहीं रहेगा। ऑपरेशन के बाद पीएम का एक के बाद एक बिहार दौरा, हजारों करोड़ की घोषणाएं और गहन जनसंपर्क—सब इस ओर इशारा कर रहे हैं कि भाजपा इस बार बिहार को हारने का खतरा नहीं उठाएगी।
🔶 तेजस्वी यादव: याद दिला रहे हैं अपने डिप्टी सीएम वाले दिन
उधर तेजस्वी यादव “काम बोलता है” की तर्ज पर अपनी पूर्ववर्ती उपमुख्यमंत्री पारी को फ्रेम में रखकर जनता को लुभाने में जुटे हैं। रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य के अपने ‘छोटे मगर ठोस कामों’ का हवाला देकर वे नीतीश-मोदी गठबंधन को चुनौती दे रहे हैं।
🔶 अंदर ही अंदर फूट: NDA और I.N.D.I.A. दोनों गठबंधनों में घमासान
वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह ने साफ कहा—“राजद-कांग्रेस गठबंधन जितना एकजुट दिखता है, अंदर से उतना ही खोकला है। सीटों के बंटवारे में यह दरार सामने आएगी।”
वहीं जदयू और भाजपा की तनातनी पर पूर्णिमा त्रिपाठी ने कहा—“नीतीश का अगड़ा आयोग चालाकी से चला गया दांव है।”
🔶 प्रशांत किशोर: क्या तीसरे मोर्चे की पटकथा लिखी जा रही है?
प्रशांत किशोर अपनी अलग राह पर हैं। वे न कांग्रेस में हैं, न भाजपा में—मगर ज़मीनी दौरे, सभाएं और जनसंवाद के जरिए वे “जन सुराज” का खाका खींच रहे हैं। क्या वे सिर्फ वोट काटेंगे, या बना पाएंगे कोई नया समीकरण? अवधेश कुमार मानते हैं कि “अगर PK वोट काटेंगे, तो दोनों तरफ से काटेंगे।”
🔶 लालू का नैतिक फैसला और तेज प्रताप की उपेक्षा
अवधेश कुमार ने तेज प्रताप को लेकर लालू यादव के “नैतिक स्टैंड” पर सवाल खड़े किए। “लड़कियों के मामले में लालू-राबड़ी को खुलकर खड़ा होना चाहिए था। सिर्फ नाम हटाने से नैतिकता नहीं निभती।”
🔶 पीएम मोदी के दौरों के पीछे की कहानी
विनोद अग्निहोत्री ने साफ संकेत दिए कि पीएम मोदी का बिहार दौरा केवल बिहार के लिए नहीं है। बंगाल, तमिलनाडु और असम जैसे राज्यों के आगामी चुनावों को लेकर भी भाजपा की जमीन तैयार हो रही है।
🔶 असली चुनौती कौन? तेजस्वी vs नीतीश vs PK vs चिराग
समीर चौगांवकर का कहना है कि NDA के भीतर भ्रम ज्यादा है। नीतीश कुमार के स्वास्थ्य, चिराग पासवान की बगावत, और भाजपा की चुप्पी—इन सबसे गठबंधन में स्पष्टता गायब है।
“क्या भाजपा ये ऐलान करेगी कि सीटें कितनी भी आएं, नीतीश ही सीएम होंगे?”
🧩 अब सबसे बड़ा सवाल
क्या बिहार 15 साल के “जंगलराज” की चर्चा करेगा या 20 साल के “विकासराज” का लेखा-जोखा मांगेगा?
क्या तीसरा विकल्प जनता को लुभा पाएगा या फिर एक बार फिर मुकाबला लालू बनाम मोदी में सिमट जाएगा?
बिहार का सियासी रण शुरू हो चुका है—अब देखना यह है कि ताज किसके सिर बंधेगा।
📌 अगली किस्त में: सीट बंटवारे की पहली झलक और कौन कितना दमदार... बने रहिए हमारे साथ।
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