Wednesday, June 18, 2025

सिद्धं कैलिग्राफी प्रदर्शनी: जब ‘रूप-ब्रह्म’ की लिपियाँ बोल उठीं गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में

तीन दिवसीय प्रदर्शनी का हुआ भव्य समापन, छात्रों ने सीखी प्राचीन सिद्धं लिपि की कला, विदेशी क्यूरेटर से मिला दुर्लभ अनुभव

, Latest Updated On - Apr 17 2025 | 10:00:00 AM
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ग्रेटर नोएडा, 17 अप्रैल 2025 — गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय इन दिनों एक खास आयोजन का गवाह बना। “सिद्धं कैलिग्राफी: रूप-ब्रह्म की अभिव्यक्तियाँ” नाम की एक अनोखी प्रदर्शनी तीन दिनों तक चली, जिसमें प्राचीन भारतीय लिपियों, खासकर सिद्धं लिपि की सुंदरता और आध्यात्मिक गहराई को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया। इस अनूठे अनुभव का समापन आज हर्षोल्लास के साथ हुआ।

प्रदर्शनी के समापन समारोह में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राणा प्रताप सिंह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे, जबकि विशेष अतिथि थे डॉ. अशिष भावे, जो इंटरनेशनल सेंटर फॉर कल्चरल स्टडीज (ICCS) के निदेशक हैं। दोनों ही विद्वानों ने इस आयोजन की सराहना करते हुए इसे भारतीय ज्ञान परंपरा की ओर लौटने का एक जरूरी कदम बताया।

डॉ. अरविंद कुमार सिंह ने गर्व के साथ बताया कि भारत के किसी भी विश्वविद्यालय में पहली बार इस तरह की सिद्धं कैलिग्राफी पर आधारित प्रदर्शनी आयोजित की गई है। उन्होंने इसे गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय की एक बड़ी उपलब्धि बताया।

प्रदर्शनी की सबसे खास बात यह रही कि इसका क्यूरेशन दक्षिण कोरिया से आए भिक्षु दोवूंग और उनके सहायक शेडुप ने किया। उन्होंने न केवल सिद्धं लिपि में रचित मंत्रों और प्रतीकों को प्रदर्शित किया, बल्कि छात्रों को सीधे लिपि सीखने का अवसर भी दिया। कई छात्र-छात्राओं ने उनके मार्गदर्शन में इस प्राचीन लिपि का अभ्यास किया।

समारोह में प्राचीन लिपियों पर कार्यशाला आयोजित करने को लेकर कुलपति और डॉ. भावे के बीच गहन चर्चा हुई, जिस पर विश्वविद्यालय के दर्शन एवं बौद्ध अध्ययन विभाग ने सैद्धांतिक सहमति दे दी है। जल्द ही कार्यशाला की रूपरेखा तैयार की जाएगी।

प्रदर्शनी के तीन दिनों में बड़ी संख्या में शोधार्थी, कला प्रेमी, छात्र और आम नागरिक पहुंचे। सभी ने इसे “ज्ञानवर्धक और दुर्लभ अनुभव” बताते हुए विश्वविद्यालय की सराहना की।

प्रो. श्वेता आनंद ने आयोजन को सफल बनाने वाले सभी सहयोगियों और विशेष रूप से दक्षिण कोरिया से आए क्यूरेटरों का आभार व्यक्त किया। वहीं, डॉ. चिंतला वेंकट सिवसाई ने कहा कि यह आयोजन विश्वविद्यालय की प्राचीन ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने के संकल्प को और भी मजबूत करता है।


इस पूरे आयोजन को सफल बनाने में विभाग के डॉ. चंद्रशेखर पासवान, डॉ. प्रियदर्शिनी मित्रा, डॉ. ज्ञानादित्य शाक्य, डॉ. मनीष टी. मेशराम, श्री विक्रम सिंह यादव और अन्य स्टाफ सदस्य कन्हैया, संदीप, अजय, सचिन आदि ने अहम भूमिका निभाई।

यह प्रदर्शनी केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि एक संस्कृति के पुनर्जागरण की शुरुआत थी।

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