वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जहां समाज में कानूनी प्रावधानों का असंतुलित और अनुचित उपयोग एक बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है।
टीचर गोविंद त्रिपाठी पर SC/ST एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज होने पर विचार और कड़ी निंदा
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जहां समाज में कानूनी प्रावधानों का असंतुलित और अनुचित उपयोग एक बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है। हमीरपुर में एक शिक्षक, गोविंद त्रिपाठी पर SC/ST एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है, क्योंकि उन्होंने अपने छात्र को अनुशासनात्मक डांट लगाई। यह मामला गंभीर विचारणीय है क्योंकि यह घटनाक्रम एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है: क्या एक शिक्षक अपने छात्र को अनुशासन सिखाने के लिए डांट भी नहीं सकता?
SC/ST एक्ट का उद्देश्य समाज के वंचित और उत्पीड़ित वर्गों की सुरक्षा और अधिकारों का संरक्षण करना था। यह एक ऐसा कानून है जिसे संविधान के तहत सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था। संविधान ने हमें समानता और न्याय की धारणा दी है, और इन वर्गों को सशक्त बनाने के लिए इस कानून की आवश्यकता थी। लेकिन इस घटना में, यह स्पष्ट होता है कि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है।
कानून का उद्देश्य और दुरुपयोग का संकट:
SC/ST एक्ट के अंतर्गत जो प्रावधान हैं, उनका उद्देश्य इन समुदायों के खिलाफ होने वाले उत्पीड़न और भेदभाव को रोकना है। लेकिन, हमीरपुर की घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या इस कानून का सही तरीके से पालन हो रहा है, या इसका दुरुपयोग हो रहा है? इस मामले में शिक्षक ने अपने छात्र को अनुशासन बनाए रखने के लिए डांटा था, और यह डांट किसी भी रूप में उत्पीड़न या भेदभाव नहीं मानी जा सकती। यह सवाल उठता है कि आखिर इस घटना की जिम्मेदारी किसकी है? क्या प्रशासन और न्यायपालिका यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि इस तरह के कानूनों का गलत उपयोग न हो? यह घटना सिर्फ गोविंद त्रिपाठी का व्यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि यह देशभर के शिक्षकों के मन में एक भय पैदा करने वाली घटना बन गई है।
शिक्षा और अनुशासन:
शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ किताबी ज्ञान देना नहीं है, बल्कि विद्यार्थियों को अनुशासन, नैतिकता और समाज में सही दिशा में बढ़ने के लिए मार्गदर्शन करना भी है। एक शिक्षक का अधिकार है कि वह अपने विद्यार्थियों को गलत रास्ते पर जाने से रोके, उन्हें सही दिशा दिखाए। अगर शिक्षक को ही यह अधिकार नहीं रहेगा, तो समाज का क्या भविष्य होगा? भारत का संविधान हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, और इस संदर्भ में यह अत्यंत आवश्यक है कि शिक्षक अपने विद्यार्थियों को सुधारने के लिए उचित कदम उठाने के लिए स्वतंत्र हों। यह घटना यह सवाल उठाती है कि क्या हम अपने शिक्षकों को उस स्वतंत्रता से वंचित कर रहे हैं?
सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी:
इस मामले में सरकार और प्रशासन की भी अहम जिम्मेदारी है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत डिजिटल मीडिया पर समाचार और विचारों को सही ढंग से प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी हमारी है, ताकि आम जनता तक सही और सत्यापित जानकारी पहुंचे। इस तरह की घटनाओं को गलत तरीके से प्रस्तुत करना, या कानून का गलत उपयोग करके किसी निर्दोष को निशाना बनाना न केवल सामाजिक असंतुलन पैदा करता है, बल्कि कानून के प्रति लोगों के विश्वास को भी कमजोर करता है। मध्यस्थ दिशानिर्देश और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम का सही पालन होना चाहिए ताकि सोशल मीडिया पर ऐसी घटनाओं को सही संदर्भ में पेश किया जाए। इसके साथ ही, नए प्रसारण विधेयक 2024 में निहित प्रावधानों का भी ध्यान रखना आवश्यक है ताकि मीडिया के माध्यम से प्रसारित की जाने वाली खबरें तथ्यों पर आधारित हों और उनमें कोई पक्षपात न हो।
कानून की दुरुपयोग की प्रवृत्ति:
इस घटना से एक और चिंताजनक पहलू सामने आता है – कानून के दुरुपयोग की प्रवृत्ति। SC/ST एक्ट जैसे महत्वपूर्ण कानूनों का उद्देश्य समाज में समानता और न्याय लाना था, लेकिन जब इस तरह के कानूनों का उपयोग निजी और गलत उद्देश्यों के लिए किया जाता है, तो इससे समाज में असंतुलन पैदा होता है।मेरा सवाल सीधा है: इस घटना की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या प्रशासन यह सुनिश्चित कर रहा है कि इस कानून का दुरुपयोग नहीं हो रहा है? क्या न्यायपालिका यह देख रही है कि इस प्रकार के मामलों में सही न्याय हो? क्या सरकार इस प्रकार के कानूनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठा रही है?यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि अगर एक शिक्षक, जिसका कर्तव्य है समाज में अनुशासन और शिक्षा का प्रसार करना, इस तरह के मुकदमों का सामना कर सकता है, तो अन्य नागरिकों का क्या होगा? यह सिर्फ गोविंद त्रिपाठी की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की समस्या है जो किसी भी रूप में अनुशासन और सुधार का कार्य करता है।
कानूनी संरक्षण और प्रेस की स्वतंत्रता:
भारतीय संविधान हमें प्रेस की स्वतंत्रता का कानूनी संरक्षण प्रदान करता है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम ऐसे मामलों को समाज के सामने लाएं और प्रशासन से जवाब मांगें। केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 और नई प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक 2023 के तहत हमें यह सुनिश्चित करना है कि इस प्रकार की घटनाओं पर मीडिया स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से चर्चा कर सके, ताकि समाज में जागरूकता बढ़े और सही न्याय की स्थापना हो सके। मेरा मानना है कि जब तक इस प्रकार के मामलों में जिम्मेदारी की भावना विकसित नहीं होगी, तब तक कानूनों का दुरुपयोग होता रहेगा। यह घटना हमें एक गंभीर चेतावनी देती है कि अगर हम अब भी नहीं चेते, तो भविष्य में ऐसी घटनाएँ और बढ़ेंगी, और कानून का गलत उपयोग हमारे समाज को और अधिक नुकसान पहुँचाएगा।
निष्कर्ष:
मैं, संदीप तिवारी, एक वरिष्ठ पत्रकार और भारत न्यूज़ 360 टीवी के एडिटर-इन-चीफ के रूप में, इस घटना की कड़ी निंदा करता हूँ और प्रशासन से यह मांग करता हूँ कि ऐसे मामलों की गंभीरता से जाँच की जाए। सविधान, आईटी एक्ट, और प्रसारण नियमों के तहत प्रशासन और न्यायपालिका की यह जिम्मेदारी है कि कानूनों का सही उपयोग हो और निर्दोष लोगों को इस प्रकार के झूठे आरोपों से बचाया जाए। आखिरकार, यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कानून का उद्देश्य समाज में न्याय और समानता लाना है, न कि निर्दोष लोगों को परेशान करना। अगर कानूनों का दुरुपयोग नहीं रोका गया, तो यह समाज में असंतुलन पैदा करेगा और हमारी न्याय व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करेगा।मेरा सवाल सीधा और स्पष्ट है: इस घटना की जिम्मेदारी कौन लेगा?
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