ग्रेटर नोएडा/नोएडा, 10 जून 2025 — उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर
जिले के
दर्जनों इंजीनियरिंग और
मैनेजमेंट कॉलेजों में शिक्षा व्यवस्था पर
गंभीर सवाल खड़े हो
रहे हैं। इन शिक्षण संस्थानों में
दाखिले के
नाम पर
छात्रों और
उनके अभिभावकों से
न केवल लाखों रुपये वसूले जा
रहे हैं, बल्कि जब
छात्र किन्हीं कारणों से
दाखिला रद्द कराना चाहते हैं, तो
कॉलेज और
एडमिशन एजेंट्स पूरी तरह
गैर-जिम्मेदार हो
जाते हैं। यह एक
सुनियोजित शोषण तंत्र का
हिस्सा लगता है, जिसमें न रसीद दी जाती है, न
ही रिफंड की कोई
ठोस प्रक्रिया अपनाई जाती है।
कंसल्टेंसी के
जाल में
फंसते छात्र
बड़ी संख्या में कॉलेज एडमिशन के
नाम पर
एजेंट्स या
कंसल्टेंसी फर्म्स के माध्यम से छात्रों को लुभाते हैं। “गैर-सरकारी एजेंट” छात्रों को
यह आश्वासन देते हैं
कि उनका दाखिला तय
है, बस
उन्हें तत्काल ₹10,000 से ₹50,000
तक की
रकम जमा
करनी होगी। यह राशि बिना किसी रसीद या
लिखित समझौते के ली
जाती है।
इसके बाद
कई बार
या तो
एडमिशन नहीं हो पाता, या छात्र किसी अन्य विकल्प को
चुनते हैं, लेकिन जो
पैसा लिया गया होता है, वो
कभी लौटाया नहीं जाता।
कॉलेज प्रशासन की चुप्पी
जब पीड़ित छात्र या
अभिभावक संबंधित कॉलेज से
संपर्क करते हैं, तो
उन्हें या
तो टालमटोल किया जाता है या
यह कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि
पैसा एजेंट को दिया गया है, कॉलेज की
कोई जिम्मेदारी नहीं है। ऐसे
में छात्र एक असहाय स्थिति में
फंस जाता है — न
तो उसका दाखिला होता है, न
ही उसकी रकम लौटती है।
क्या कहते हैं छात्र?
कृष्णा शर्मा, जो
ग्रेटर नोएडा के एक
नामी मैनेजमेंट कॉलेज में दाखिला लेने जा
रहे थे, बताते हैं,
“मुझे कंसल्टेंसी ने
कहा कि
₹25,000 जमा कर
दो, तुम्हारा बीबीए में
एडमिशन पक्का है। बाद
में मुझे किसी अन्य यूनिवर्सिटी में
दाखिला मिल
गया, तो
मैंने एडमिशन कैंसल करवाया। तब से
लेकर अब
तक मैं
हर हफ्ते कॉल कर
रहा हूं, लेकिन न
पैसा वापस मिला, न
कोई सुनवाई हो रही
है।”
प्रियंका त्यागी, जिन्होंने बीटेक में दाखिले के लिए
₹40,000 की एडवांस फीस जमा
की थी, बताती हैं,
“कॉलेज कहता है
कि एजेंट से बात
करो, एजेंट कहता है
कि कॉलेज रिफंड नहीं दे रहा। अब मैं
FIR दर्ज करवाने की सोच
रही हूं।”
नियमों का
उल्लंघन
AICTE और UGC जैसे नियामक निकायों द्वारा स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं
कि अगर
कोई छात्र दाखिला नहीं लेता, या
दाखिले के
कुछ दिन
बाद सीट
छोड़ता है, तो तय
समयसीमा में
फीस का
रिफंड देना अनिवार्य है।
लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट
है। कॉलेजों में ना
ही रिफंड नीति का
पालन होता है, और
ना ही
छात्रों को
इसकी जानकारी दी जाती है।
शिक्षा विभाग की भूमिका संदिग्ध
अब सवाल उठता है
कि जिला शिक्षा अधिकारियों और
तकनीकी शिक्षा विभाग की
इस पर
नजर क्यों नहीं है? क्यों नहीं ऐसे कॉलेजों पर कार्रवाई की जाती जो नियमों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ा रहे हैं? क्या इन
कॉलेजों और
कंसल्टेंसी फर्मों की सांठगांठ से एक
पूरा भ्रष्टाचार का
जाल खड़ा हो चुका है?
कानूनी विकल्प भी सीमित
कई बार
छात्र अदालत या उपभोक्ता फोरम का
सहारा लेते हैं, लेकिन प्रक्रिया लंबी और खर्चीली होती है।
ज़्यादातर पीड़ित छात्र, विशेषकर ग्रामीण और
मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से
आने वाले, न्याय के
लिए संघर्ष नहीं कर
पाते। यही
कारण है
कि इस
तरह की
घटनाएं बार-बार दोहराई जाती हैं।
कार्रवाई की
मांग
छात्र संगठनों और अभिभावकों की
मांग है
कि जिला प्रशासन इस
मामले की
गंभीरता से
जांच करे
और दोषी कॉलेजों और
एजेंटों पर
कड़ी कार्रवाई की जाए। साथ ही, एक पारदर्शी एडमिशन सिस्टम लागू किया जाए जिसमें सभी भुगतान ऑनलाइन और
रसीद सहित हों, और
रिफंड पॉलिसी को सार्वजनिक किया जाए।
गौतम बुद्ध नगर के कई निजी कॉलेज अब शिक्षा के मंदिर नहीं, बल्कि 'कमाई के केंद्र' बनते जा रहे हैं। जहां छात्रों के सपनों का सौदा किया जा रहा है, और भरोसे के नाम पर लूट मचाई जा रही है। यदि जल्द ही इस दिशा में सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह सिर्फ छात्रों के भविष्य ही नहीं, बल्कि संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था की साख को भी नुकसान पहुंचाएगा।
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