7 जून 2025
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस वर्ष इटली में आयोजित होने जा रहे जी7 शिखर सम्मेलन (G7 Summit
2025) में आमंत्रित किया गया है। यह निमंत्रण कनाडा के नव-निर्वाचित प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की ओर से विशेष रूप से भेजा गया है, जिन्होंने हाल ही में जस्टिन ट्रूडो के स्थान पर देश की कमान संभाली है। यह निमंत्रण वैश्विक राजनीति और भारत-कनाडा द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम माना जा रहा है।
भारत की वैश्विक भूमिका को मान्यता
जी7 सम्मेलन में भारत को आमंत्रित किया जाना, प्रधानमंत्री मोदी और भारत की वैश्विक भूमिका को एक बार फिर से मान्यता मिलने जैसा है। जी7 एक प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय मंच है, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान जैसे शक्तिशाली लोकतांत्रिक देश शामिल हैं। भारत, हालांकि इस समूह का स्थायी सदस्य नहीं है, फिर भी हाल के वर्षों में उसे विशेष आमंत्रण देकर इस मंच का हिस्सा बनाया जाता रहा है।
कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी द्वारा दिया गया यह आमंत्रण न केवल भारत-कनाडा रिश्तों को नया आयाम दे सकता है, बल्कि जी7 में भारत की भूमिका को भी और सशक्त बना सकता है। भारत, जो अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, जलवायु परिवर्तन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, वैश्विक आपूर्ति शृंखला और विकासशील देशों की आवाज़ के रूप में अपनी स्थिति लगातार मजबूत कर रहा है।

कनाडा में सत्ता परिवर्तन और नई कूटनीति
कनाडा में हाल ही में हुए आम चुनावों में मार्क कार्नी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला है। उनका नेतृत्व ट्रूडो के मुकाबले अधिक संतुलित और पेशेवर छवि के साथ सामने आया है। मार्क कार्नी, जो पहले बैंक ऑफ कनाडा और बैंक ऑफ इंग्लैंड के गवर्नर रह चुके हैं, वैश्विक अर्थव्यवस्था और जलवायु मुद्दों पर अच्छी पकड़ रखते हैं। उनके नेतृत्व में भारत के साथ रिश्तों में सुधार की संभावना जताई जा रही है।
ट्रूडो सरकार के कार्यकाल में भारत-कनाडा संबंधों में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों को लेकर काफी तनाव रहा। विशेष रूप से 2023-24 में भारत सरकार और कनाडाई प्रशासन के बीच खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर विवाद चरम पर था। इस बीच, प्रधानमंत्री मार्क कार्नी का पीएम मोदी को जी7 में बुलाना यह संकेत देता है कि वे संबंधों को फिर से पटरी पर लाना चाहते हैं।
खालिस्तान मुद्दा फिर भी चर्चा में
हालांकि यह निमंत्रण एक सकारात्मक पहल मानी जा रही है, लेकिन खालिस्तान मुद्दा अभी भी भारत-कनाडा संबंधों में छाया हुआ है। कनाडा में खालिस्तानी समर्थक संगठनों की गतिविधियाँ, वहां के सिख समुदाय में बढ़ती कट्टरता और भारत-विरोधी कार्यक्रम, भारत सरकार के लिए लगातार चिंता का विषय रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जी7 सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी और पीएम कार्नी की मुलाकात होती है, तो इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा हो सकती है। भारत चाहता है कि कनाडा अपनी जमीन को खालिस्तान समर्थक गतिविधियों के लिए इस्तेमाल न होने दे। वहीं कनाडा, अपने यहां की 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के नाम पर इन गतिविधियों पर अब तक सख्ती से रोक लगाने से बचता रहा है।
संभावित एजेंडा: वैश्विक मुद्दों पर भारत की भागीदारी
जी7 समिट 2025 के संभावित एजेंडे में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका, वैश्विक जलवायु संकट, यूक्रेन युद्ध, वैश्विक स्वास्थ्य, आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन और विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहयोग जैसे विषय शामिल हो सकते हैं। भारत इन मुद्दों पर अपनी स्वतंत्र आवाज़ रखता रहा है और विकसित देशों से भिन्न दृष्टिकोण को सामने लाने की कोशिश करता है।
पिछले कुछ वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी ने जी20, COP28,
SCO और ब्रिक्स जैसे मंचों पर भी भारत की उपस्थिति को बेहद प्रभावशाली ढंग से रखा है। जी7 समिट में भी उनकी भागीदारी भारत की रणनीतिक सोच और 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के सिद्धांत को वैश्विक स्तर पर मजबूती प्रदान करेगी।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और कूटनीतिक समीकरण
भारत में भाजपा के नेताओं और समर्थकों ने इस आमंत्रण को भारत की कूटनीतिक सफलता करार दिया है। वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने यह सवाल उठाया है कि क्या इस दौरे में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों पर भारत सरकार कठोर संदेश दे पाएगी?
कनाडा की मीडिया में भी इस मुद्दे को लेकर बहस छिड़ गई है। कुछ विश्लेषक मानते हैं कि मार्क कार्नी की यह पहल व्यापार और जलवायु सहयोग के लिहाज से सही है, जबकि कुछ इसे खालिस्तान विवाद से ध्यान भटकाने की रणनीति बता रहे हैं।
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