अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार द्वारा हार्वर्ड विश्वविद्यालय के इंटरनेशनल स्टूडेंट्स प्रोग्राम को अचानक बंद करने के फैसले ने वैश्विक शिक्षा जगत में एक नई बहस छेड़ दी है। गुरुवार को अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (DHS) ने यह निर्णय लिया कि हार्वर्ड अब से नए अंतरराष्ट्रीय छात्रों को प्रवेश नहीं देगा, और वर्तमान में नामांकित लगभग 6,800 विदेशी छात्रों को या तो अन्य संस्थानों में स्थानांतरित होना होगा या अमेरिका में अपनी कानूनी स्थिति खोने का खतरा उठाना होगा। इस कदम का व्यापक विरोध शुरू हो गया है, जिसमें शिक्षाविदों, छात्रों, वैश्विक नेताओं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ट्रंप प्रशासन की इस कार्रवाई को शिक्षा की स्वतंत्रता और वैश्विक सहयोग के मूल्यों पर सीधा हमला बताया है।
ट्रंप प्रशासन का आरोप: हार्वर्ड 'राष्ट्रविरोधी गतिविधियों' में संलिप्त
गृह सुरक्षा सचिव क्रिस्टी नोएम ने प्रेस को जानकारी देते हुए कहा कि यह निर्णय 'राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों' से लिया गया है। उनके अनुसार हार्वर्ड पर यह आरोप है कि वह एक ऐसा वातावरण बना रहा है जो यहूदी छात्रों के लिए असुरक्षित है, हिंसात्मक विरोध को बढ़ावा दे रहा है, और कथित रूप से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ 'वैचारिक गठबंधन' में है। उन्होंने कहा, "संघीय फंडिंग प्राप्त करने वाला कोई भी संस्थान यदि अमेरिकी मूल्यों और कानूनों का उल्लंघन करता है, तो उसे इसकी कीमत चुकानी होगी। हार्वर्ड अब सुरक्षित शिक्षण संस्था नहीं रह गई है।"
हार्वर्ड की तीखी प्रतिक्रिया: “यह फैसला अवैध और प्रतिशोधात्मक”
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष एलन गारबर ने एक लिखित बयान में कहा, “यह निर्णय पूर्ण रूप से राजनीति से प्रेरित, गैरकानूनी और प्रतिशोधात्मक है। यह अमेरिकी शिक्षा प्रणाली के मूलभूत सिद्धांतों – स्वतंत्रता, विविधता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग – पर सीधा हमला है।” उन्होंने आगे कहा कि हार्वर्ड इस निर्णय के खिलाफ कानूनी विकल्पों की तलाश कर रहा है और अपने सभी छात्रों, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों के अधिकारों की रक्षा करेगा। हार्वर्ड प्रशासन ने सभी प्रभावित छात्रों को काउंसलिंग, कानूनी सलाह और अन्य विश्वविद्यालयों में ट्रांसफर की प्रक्रिया में मदद देने की बात कही है।
छात्रों में गुस्सा और निराशा
इस निर्णय से न केवल हार्वर्ड बल्कि पूरे अमेरिका में पढ़ रहे विदेशी छात्रों में भय और चिंता का माहौल है। हार्वर्ड में वर्तमान में नामांकित करीब 788 भारतीय छात्र और विद्वान हैं, जिनमें से 467 पूर्णकालिक छात्र हैं। इनमें से अधिकतर का कहना है कि उन्होंने बड़ी मेहनत, वित्तीय निवेश और वर्षों की तैयारी के बाद इस प्रतिष्ठित संस्थान में प्रवेश पाया था, और अब उनका भविष्य अनिश्चित है। भारतीय छात्रा मेघा चौधरी, जो हार्वर्ड में मास्टर्स कर रही हैं, कहती हैं, “यह एक दुःस्वप्न जैसा है। हम शिक्षा के लिए यहां आए थे, न कि किसी राजनीतिक खेल का हिस्सा बनने के लिए।”
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: अमेरिका की वैश्विक प्रतिष्ठा पर सवाल
ब्रिटेन, कनाडा, भारत, जर्मनी, जापान सहित कई देशों ने अमेरिका के इस निर्णय पर चिंता जताई है। भारत के विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी दूतावास से स्पष्टीकरण मांगा है और अपने छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है। ब्रिटिश विदेश मंत्री ने कहा, “इस प्रकार की नीतियां अमेरिका की वैश्विक शिक्षा में नेतृत्व की भूमिका को नुकसान पहुंचाएंगी। विदेशी छात्र केवल आर्थिक निवेश ही नहीं लाते, वे अमेरिका को सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध बनाते हैं।”
राजनीतिक पृष्ठभूमि: ट्रंप की वापसी और कट्टर राष्ट्रवाद का रुख
डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद पर वापसी की तैयारी के साथ ही अमेरिका में ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति को फिर से आक्रामक रूप से लागू करना शुरू कर दिया है। ट्रंप और उनके समर्थकों का मानना है कि विश्वविद्यालयों में ‘वामपंथी एजेंडा’ हावी है और हार्वर्ड जैसे प्रतिष्ठित संस्थान 'राष्ट्रविरोधी विचारधारा' को बढ़ावा दे रहे हैं। विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला ट्रंप प्रशासन की उसी रणनीति का हिस्सा है, जो शिक्षा प्रणाली को नियंत्रित कर अपने राजनीतिक विरोधियों को कमजोर करना चाहती है।
भविष्य की राह: कानूनी लड़ाई और छात्रों की चुनौती
हार्वर्ड ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह इस निर्णय के खिलाफ अदालत का रुख करेगा। विश्वविद्यालय के वकीलों का तर्क है कि यह निर्णय विश्वविद्यालय की स्वायत्तता का उल्लंघन है और 1965 के उच्च शिक्षा अधिनियम तथा फर्स्ट अमेंडमेंट के खिलाफ है। छात्र संगठनों और मानवाधिकार संस्थाओं ने भी इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की शुरुआत कर दी है। हार्वर्ड कैंपस में सैकड़ों छात्रों ने गुरुवार रात को “Education
Not Politics” और “Let Us
Learn” जैसे नारों के साथ मार्च निकाला।
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