मिशन शक्ति और अंतर्राष्ट्रीय बालिका सप्ताह के तहत उत्तर प्रदेश में बालिकाओं को सशक्त बनाने और बाल विवाह रोकने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया।
उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा मिशन शक्ति अभियान और अंतर्राष्ट्रीय बालिका सप्ताह (3-11 अक्टूबर) के अंतर्गत "बाल विवाह को ना" विषयक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस आयोजन का उद्देश्य बालिकाओं और महिलाओं को सामाजिक बंधनों से मुक्त कर उनके अधिकारों और संभावनाओं को सशक्त बनाना था। विशेष रूप से उन बालिकाओं का सम्मान किया गया, जिन्होंने सामाजिक दबाव के बावजूद समय से पहले विवाह को ठुकराकर शिक्षा और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी।

प्रदेश भर में आयोजित कार्यक्रमों में सामुदायिक संवाद, गोष्ठियाँ, नाटक, वाद-विवाद और व्याख्यान आयोजित किए गए, जिनमें विशेषज्ञों, अध्यापकों और समाजसेवियों ने बाल विवाह के दुष्परिणामों पर विस्तार से चर्चा की। महिला एवं बाल विकास विभाग ने पिछले 5 वर्षों में 2000 से अधिक संभावित बाल विवाहों को रोका। NFHS-5 सर्वेक्षण (2019-21) के अनुसार, उत्तर प्रदेश में अभी भी 15-18 प्रतिशत बालिकाओं का विवाह 18 वर्ष से पहले हो जाता है, जबकि राष्ट्रीय औसत 23.3 प्रतिशत है। प्रदेश सरकार 2030 तक उत्तर प्रदेश को बाल विवाह मुक्त बनाने का संकल्पित है।

विशेषज्ञों ने बताया कि कम आयु में विवाह से बालिकाओं की शिक्षा बाधित होती है, करियर और आत्मनिर्भरता सीमित होती है, और मातृ व शिशु मृत्यु दर बढ़ती है। साथ ही घरेलू हिंसा और शोषण की आशंका भी अधिक रहती है। भारत सरकार द्वारा लागू बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत बाल विवाह करवाना या उसमें शामिल होना दंडनीय अपराध है।
अपर मुख्य सचिव लीना जोहरी ने कहा कि बाल विवाह केवल सामाजिक कुरीति नहीं, बल्कि बालिकाओं के अधिकारों का उल्लंघन है। शिक्षा, आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण के माध्यम से ही यह प्रथा समाप्त की जा सकती है। कार्यक्रम ने यह संदेश दिया कि हर बालिका को अपने जीवन के निर्णय स्वयं लेने का अधिकार होना चाहिए।
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